शिकायत बोल

शिकायत बोल
ऐसा कौन होगा जिसे किसी से कभी कोई शिकायत न हो। शिकायत या शिकायतें होना सामान्य और स्वाभाविक बात है जो हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। हम कहीं जाएं या कोई काम करें अपनों से या गैरों से कोई न कोई शिकायत हो ही जाती है-छोटी या बड़ी, सहनीय या असहनीय। अपनों से, गैरों से या फ़िर खरीदे गये उत्पादों, कम्पनियों, विभिन्न सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की सेवाओं, लोगों के व्यवहार-आदतों, सरकार-प्रशासन से कोई शिकायत हो तो उसे/उन्हें इस मंच शिकायत बोल पर रखिए। शिकायत अवश्य कीजिए, चुप मत बैठिए। आपको किसी भी प्रकार की किसी से कोई शिकायत हो तोर उसे आप औरों के सामने शिकायत बोल में रखिए। इसका कम या अधिक, असर अवश्य पड़ता है। लोगों को जागरूक और सावधान होने में सहायता मिलती है। विभिन्न मामलों में सुधार की आशा भी रहती है। अपनी बात संक्षेप में संयत और सरल बोलचाल की भाषा में हिन्दी यूनीकोड, हिन्दी (कृतिदेव फ़ोन्ट) या रोमन में लिखकर भेजिए। आवश्यक हो तो सम्बधित फ़ोटो, चित्र या दस्तावेज जेपीजी फ़ार्मेट में साथ ही भेजिए।
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बुधवार, 29 अप्रैल 2015

ग्राहक

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ग़ौरतलब है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 मेंउत्पाद और सेवाएं शामिल हैं। उत्पाद वे होते हैं, जिनका निर्माण या उत्पादन किया जाता है और जिन्हें थोक विक्रेताओं या खुदरा व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को बेचा जाता है। सेवाओं में परिवहन, टेलीफोन, बिजली, निर्माण, बैंकिंग, बीमा, चिकित्सा-उपचार आदि शामिल हैं। आम तौर पर ये सेवाएं पेशेवर लोगों द्वारा प्रदान की जाती हैं, जैसे चिकित्सक, इंजीनियर, वास्तुकार, वकील आदि. इस अधिनियम के कई उद्देश्य हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की सुरक्षा, उपभोक्ता संरक्षण परिषदों एवं उपभोक्ता विवाद निपटान अभिकरणों की स्थापना शामिल है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि उपभोक्ता कौन है और किन-किन सेवाओं को इस क़ानून के दायरे में लाया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक़, किसी भी वस्तु को क़ीमत देकर प्राप्त करने वाला या निर्धारित राशि का भुगतान कर किसी प्रकार की सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है। अगर उसे खरीदी गई वस्तु या सेवा में कोई कमी नज़र आती है तो वह ज़िला उपभोक्ता फोरम की मदद ले सकता है. इस अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अनुबंध (2) के मुताबिक़, उपभोक्ता का आशय उस व्यक्ति से है, जो किन्हीं सेवाओं को शुल्क की एवज में प्राप्त करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 के अपने एक फैसले में कहा कि इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, जो इन सेवाओं से लाभान्वित हो रहे हों।
यह क़ानून उपभोक्ताओं के लिए एक राहत बनकर आया है। 1986 से पहले उपभोक्ताओं को दीवानी अदालतों के चक्कर लगाने प़डते थे। इसमें समय के साथ-साथ धन भी ज़्यादा खर्च होता था। इसके अलावा उपभोक्ताओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना प़डता था। इस समस्या से निपटने और उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए संसद ने ज़िला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर विवाद पारितोष अभिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया। यह जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है। जम्मू-कश्मीर ने इस संबंध में अपना अलग क़ानून बना रखा है। इस अधिनियम के तहत तीन स्तरों पर अभिकरणों की स्थापना की गई है, ज़िला स्तर पर ज़िला मंच, राज्य स्तर पर राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग। अब उपभोक्ताओं को वकील नियुक्त करने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें अदालत की फीस भी नहीं देनी पड़ती। इन अभिकरणों द्वारा उपभोक्ता का परिवाद निपटाने की सेवा पूरी तरह नि:शुल्क है। इन तीनों अभिकरणों को दो प्रकार के अधिकार हासिल हैं- पहला धन संबंधी अधिकार और दूसरा क्षेत्रीय अधिकार। ज़िला मंच में 20 लाख रुपये तक के वाद लाए जा सकते हैं। राज्य आयोग में 20 लाख से एक करो़ड़ रुपये तक के मामलों का निपटारा किया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय आयोग में एक करो़ड़ रुपये से ज़्यादा के मामलों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यह धन संबंधी अधिकार है। जिस ज़िले में विरोधी पक्ष अपना कारोबार चलाता है या उसका ब्रांच ऑफिस है या वहां कार्य कर रहा है तो वहां के मंच में शिकायती पत्र दिया जा सकता है. इसे क्षेत्रीय अधिकार कहते हैं। उपभोक्ता को वस्तु और सेवा के बारे में एक शिकायत देनी होती है, जो लिखित रूप में किसी भी अभिकरण में दी जा सकती है। मान लीजिए, ज़िला मंच को शिकायत दी गई। शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर ज़िला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे. उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं. ज़िला मंच वस्तु का नमूना प्रयोगशाला में भेजता है। इसकी फीस उपभोक्ता से ली जाती है. प्रयोगशाला 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट भेजेगी। अगर रिपोर्ट में वस्तु की गुणवत्ता में कमी साबित हो गई तो ज़िला मंच विरोधी पक्ष को आदेश देगा कि वह माल की त्रुटि दूर करे, वस्तु को बदले या क़ीमत वापस करे या नुक़सान की भरपाई करे, अनुचित व्यापार बंद करे और शिकायतकर्ता को पर्याप्त खर्च दे आदि। अगर शिकायतकर्ता ज़िला मंच के फैसले से खुश नहीं है तो वह अपील के लिए निर्धारित शर्तें पूरी करके राज्य आयोग और राज्य आयोग के फैसले के खिला़फ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है. इन तीनों ही अभिकरणों में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। मंच या आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की क़ैद या 10 हज़ार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों सज़ाएं हो सकती हैं।
कुछ ही बरसों में इस क़ानून ने उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण किरदार निभाया। इसके ज़रिये लोगों को शोषण के खिला़फ आवाज़ बुलंद करने का साधन मिल गया. इसमें 1989, 1993 और 2002 में संशोधन किए गए, जिन्हें 15 मार्च, 2003 को लागू किया गया। संशोधनों में राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के आयोगों की पीठ का सृजन, सर्किट पीठ का आयोजन, शिकायतों की प्रविष्टि, सूचनाएं जारी करना, शिकायतों के निपटान के लिए समय सीमा का निर्धारण, भूमि राजस्व के लिए बक़ाया राशियों के समान प्रमाणपत्र मामलों के माध्यम से निपटान अभिकरण द्वारा मुआवज़े की वसूली का आदेश दिया जाना, निपटान अभिकरण द्वारा अंतरिम आदेश जारी करने का प्रावधान, ज़िला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना, ज़िला स्तर पर निपटान अभिकरण के संदर्भ में दंडात्मक न्याय क्षेत्र में संशोधन और नक़ली सामान/निम्न स्तर की सेवाओं के समावेश को अनुचित व्यापार प्रथाओं के रूप में लेना आदि शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2002 के बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण विनियम-2005 तैयार किया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ताओं को अधिकार दिया है कि वे अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाएं. इसी क़ानून का नतीजा है कि अब उपभोक्ता जागरूक हो रहे हैं। इस क़ानून से पहले उपभोक्ता ब़डी कंपनियों के खिला़फ बोलने से गुरेज़ करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. मिसाल के तौर पर एक उपभोक्ता ने चंडीग़ढ से कुरुक्षेत्र फोन शिफ्ट न होने पर रिलायंस इंडिया मोबाइल लिमिटेड के खिला़फ शिकायत दर्ज कराई और उसे इसमें कामयाबी मिली। इस लापरवाही के लिए उपभोक्ता अदालत ने रिलायंस पर 1.5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया. इसी तरह एक उपभोक्ता ने रेलवे के एक कर्मचारी द्वारा उत्पीड़ित किए जाने पर भारतीय रेल के खिला़फ उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा दिया। नतीजतन, उपभोक्ता अदालत ने रेलवे पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगा दिया। बीते जून माह में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने ओडिसा के बेलपहा़ड के पशु आहार वि क्रेता राजेश अग्रवाल पर एक लाख 20 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया। मामले के मुताबिक़, ओडिसा के बेलपहा़ड के पशुपालक राम नरेश यादव ने अगस्त 2004 में राजेश की दुकान से पशु आहार खरीदा था। इसे खाने के कुछ घंटे बाद उसकी एक भैंस, एक गाय और दो बछड़ियों ने दम तो़ड दिया। इसके अलावा बेल पहाड़ के जुल्फिकार अली भुट्टो की एक गाय की भी यह पशु आहार खाने से मौत हो गई। पीड़ितों द्वारा मामले की सूचना थाने में देने के बाद ब्रजराज नगर के पशु चिकित्सक लोचन जेना एवं बेलपहाड़ के पशु चिकित्सक प्रफुल्ल नायक ने भी पोस्टमार्टम के उपरांत इस बात की पुष्टि की कि पशुओं की मौत विषैला दाना खाने से हुई है। राम नरेश द्वारा क्षतिपूर्ति मांगने पर व्यवसायी ने कुछ भी देने से इंकार कर दिया। इस पर राम नरेश ने ज़िला उपभोक्ता अदालत की शरण ली और अदालत ने पशु आहार विक्रेता को दोषी क़रार दिया। इस फैसले के खिला़फ व्यापारी राजेश ने राज्य उपभोक्ता अदालत और बाद में 2007 में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपील दायर की। राष्ट्रीय अदालत के जज जे एम मल्लिक और सुरेश चंद्रा की खंडपीठ ने राज्य उपभोक्ता अदालत के फैसले को सही मानते हुए व्यापारी को एक लाख बीस हज़ार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता समूहों को प्रोत्साहित करने का काम किया है. इस क़ानून से पहले जहां देश में स़िर्फ 60 उपभोक्ता समूह थे, वहीं अब उनकी तादाद हज़ारों में है. उन उपभोक्ता समूहों ने स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है। सरकार ने उपभोक्ता समूहों को आर्थिक सहयोग मुहैया कराने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं। टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान बनी है। देश भर के उपभोक्ता टोल फ्री नंबर 1800-11-14000 डायल कर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श ले सकते हैं। उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई जागो, ग्राहक जागो जैसी मुहिम से भी आम लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता चला है।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी तब माना था कि राज्य सरकारें उपभोक्ता मंच और आयोग को सुविधा संपन्न बनाने के लिए केंद्र द्वारा जारी बजट का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। इस बजट का समुचित उपयोग होना चाहिए। उनका यह भी मानना था कि उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें। बहरहाल, उपभोक्ताओं को खरीदारी करते व़क्त सावधानी बरतनी चाहिए। उपभोक्ताओं को विभिन्न आधारभूत पहलुओं जैसे अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी), सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग, उत्पादों पर भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) का निशान और समाप्ति की तारी़ख के बारे में जानकारी होनी चाहिए. इसके बावजूद अगर उनके साथ धोखा होता है तो उसके खिला़फ शिकायत करने का अधिकार क़ानून ने उन्हें दिया है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

उपभोक्ताओं की परेशानियां
सेहत के लिए नुक़सानदेह पदार्थ मिलाकर व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या कुछ ऐसे पदार्थ निकाल लेना, जिनके कम होने से पदार्थ की गुणवत्ता पर विपरीत असर प़डता है, जैसे दूध से क्रीम निकाल कर बेचना।
टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं में गुमराह करने वाले विज्ञापनों के ज़रिये वस्तुओं तथा सेवाओं का ग्राहकों की मांग को प्रभावित करना।
वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना।
बिक्री के बाद सेवाओं को अनुचित रूप से देना।
दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना।
क़ीमत में छुपे हुए तथ्य शामिल होना।
उत्पाद पर ग़लत या छुपी हुई दरें लिखना।
वस्तुओं के वज़न और मापन में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना।
थोक मात्रा में आपूर्ति करने पर वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना।
अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का ग़लत तौर पर निर्धारण करना।
एमआरपी से ज़्यादाक़ीमत पर बेचना।
दवाओं आदि जैसे अनिवार्य उत्पादों की अनाधिकृत बिक्री उनकी समापन तिथि के बाद करना।
कमज़ोर उपभोक्ताएं सेवाएं, जिसके कारण उपभोक्ता को परेशानी हो।
बिक्री और सेवाओं की शर्तों और निबंधनों का पालन न करना।
उत्पाद के बारे में झूठी या अधूरी जानकारी देना।
गारंटी या वारंटी आदि को पूरा न करना।
उपभोक्ताओं के अधिकार
जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं के विपणन के खिला़फ सुरक्षा का अधिकार।
सामान अथवा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके।
जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन।
उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार।
अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार।
सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार।
अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार।
माप-तोल के नियम
हर बाट पर निरीक्षक की मुहर होनी चाहिए।
एक साल की अवधि में मुहर का सत्यापन ज़रूरी है।
पत्थर, धातुओं आदि के टुक़डों का बाट के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता।
फेरी वालों के अलावा किसी अन्य को तराज़ू हाथ में पक़ड कर तोलने की अनुमति नहीं है।
तराज़ू एक हुक या छ़ड की सहायता से लटका होना चाहिए।
लक़डी और गोल डंडी की तराज़ू का इस्तेमाल दंडनीय है।
कप़डे मापने के मीटर के दोनों सिरों पर मुहर होनी चाहिए।
तेल एवं दूध आदि के मापों के नीचे तल्ला लटका हुआ नहीं होना चाहिए।
मिठाई, गिरीदार वस्तुओं एवं मसालों आदि की तुलाई में डिब्बे का वज़न शामिल नहीं किया जा सकता।
पैकिंग वस्तुओं पर निर्माता का नाम, पता, वस्तु की शुद्ध तोल एवं क़ीमत कर सहित अंकित हो. साथ ही पैकिंग का साल और महीना लिखा होना चाहिए।
पैकिंग वस्तुओं पर मूल्य का स्टीकर नहीं होना चाहिए।
साभार: चौथी दुनिया

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

आबादी

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

मंजन


प्रकृति ने भी दी हैं दन्त मंजन की सामग्री
   हानिकारक रसायन कैंसर की आशंका बढ़ा देते हैं। इस स्थिति में दांत की सफाई प्राकृतिक विकल्प काफी मददगार साबित हो सकते हैं। इससे आपके दांत और मसूड़े साफ होंगे और साथ ही कोई नुकसान भी नहीं होगा। आइए कुछ प्राकृतिक टूथपेस्ट के बारे में जानते हैं। 


   कई डिजाइन के ब्रश और टूथपेस्ट से दांत साफ करने के बावजूद कई बार मुंह में हजारों जीवाणु रह जाते हैं। टेक्सॉस यूनिवर्सिटी के डेंटिस्ट्री स्कूल के शोध में यह दावा किया है।

दातून: नीम, नीलगिरी या फिर अमरूद के पेड़ से दातून आसानी से मिल सकते हैं। इनमें प्राकृतिक तेल होता है जो दांतों और मसूड़ों को साफ करता है।
सेंधा नमक: सेंधा नमक में पानी मिलाएं। इस मिश्रण को सीधे ब्रश में लगाकर दांत साफ करें। इससे माउथ वाश भी बनाया जा सकता है। इससे मुंह की बदबू और दांतों की कैविटी दूर होती है।
बेकिंग सोडा: यह दांतों में एसिड की मात्रा कम करता है और जीवाणुओं को मारता है। इससे माउथवॉश बनाने के लिए बेकिंग सोडा, नमक, फिटकरी और सिरके का मिश्रण तैयार करें। टूथपेस्ट बनाने के लिए दो भाग बेकिंग सोडा में एक भाग नमक मिलाएं।
खाद्य तेल: पुदीने, लौंग और दालचीनी में एंटीबैक्टीरियल एजेंट होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से दांतों की सफाई करते हैं।
पानी: दांतों को केवल पानी से ब्रश करने पर दांत में फसे खाद्य पदार्थों के रेशे आदि आराम से निकल जाएंगे।
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बुधवार, 22 अप्रैल 2015

पेन कार्ड

अब सिर्फ ४८ घंटे में पैन कार्ड
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सरकार  शीघ्र ही ४८ घंटे में   पैन कार्ड  जारी करने की सुविधा शुरू करने जा  रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, जल्द ही पैन जारी करने के लिए यह इंटरनेट पर ऑनलाइन सुविधा होगी। आवेदन करने वाले को  को उसका पैन कार्ड सिर्फ ४८ घंटे में मिल जाएगा। 
सरकार की  ग्रामीण इलाकों सहित देशभर में विशेष शिविर लगाए जाने की योजना है जिसमें लोग अपना पैन कार्ड आसानी से  प्राप्त कर सकेंगे। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड  ने हाल में एक अधिसूचना जारी की है जिसमें  पैन कार्ड पाने के लिए मतदाता पहचान पत्र व आधार कार्ड को जन्मतिथि का वैध प्रमाण घोषित किया है। टैक्स  रिटर्न जमा करने, एक निश्चित राशि से अधिक की अचल संपत्ति की खरीद-फरोख्त, किसी वाहन की बिक्री या खरीद आदि के लिए पैन कार्ड की आवश्यकता पड़ती है।

सावधान

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फ़ेसबुक मैत्री
फ़ेसबुक पर ऐसे मित्रता-अनुरोध स्वीकार न करें तो बेहतर। मित्रता अनुरोध आने पर पहले संबंधित व्यक्ति के फ़ेसबुक प्रोफाइल पर जाकर एक नज़र ज़रूर डालें। ऐसे व्यक्तियों के मित्रता अनुरोध स्वीकार करने से बचें-
१ जो आपके परिचित न रहे हों और इतना ही नहीं, आपके किसी परिचित के भी परिचित न हों। यानी किसी भी मित्र के मित्र न हों।
२. जिन्होंने अपना प्रोफ़ाइल चित्र न लगाया हो, यानी जो अपनी पहचान छिपाना चाहते हों। जो प्रोफाइल चित्र के स्थान पर किसी सेलिब्रिटी का, फूल या किसी वस्तु का, ढंके हुए चेहरे का, या पीछे से लिए गए चित्र आदि का प्रयोग करते हों।
३. जिनके मित्रों की संख्या बहुत ही कम हो (५-७) या न हो।
४. जिन्होंने अभी-अभी फ़ेसबुक प्रोफाइल बनाया हो।
५. जिनके फेसबुक पेज पर कोई टिप्पणी न हो। (क्योंकि उनका उद्देश्य टिप्पणी करना है ही नहीं)।
६. जिनकी फोटो गैलरी में कोई फोटो न हो, संभवतः पहचान छिपाने के लिए। कुछ लोग कैमरा न होने के कारण भी चित्र नहीं लगा पाते। यहाँ अपने विवेक का प्रयोग करें।
७. जिनके फ़ेसबुक पेज पर दी गई टिप्पणियाँ आपत्तिजनक हों। गाली-गलौच की भाषा इस्तेमाल करते हों या अश्लील टिप्पणियाँ/सामग्री प्रयोग करते हों।
८. धार्मिक कट्टरपंथी हों और फेसबुक का प्रयोग इसीलिए करते हों।
९. जिनके साथ आपकी मित्रता का कोई आधार न हो।
१०. जो विदेशी हों और आप समझ न पाएँ कि उन्हें आपसे मित्रता करने में क्या दिलचस्पी हो सकती है। 
मित्र बनाने के बाद भी यदि कोई शख्स आपके या आपके मित्रों के साथ, या आपकी सामग्री के साथ गलत हरकत करता है तो उसे Unfriend करने में जरा भी संकोच न करें। 
ज़रूरत समझें तो गलत व्यक्तियों के बारे में Facebook को सूचित करें ताकि वे किसी अन्य को अपना निशाना न बनाएँ।
• बालेन्दु शर्मा दधीच

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

कार

नयी कार, पुरानी कार

दि‍ल्‍ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हि‍रयाणा समुद्र तट से काफी दूर हैं अत: इस पूरे क्षेत्र में वाहनों में लगी मैटि‍ल में क्षरण आते रहने की कम ही संभावना रहती है। ऐसे में टैक्‍नीकल जांच में सही पाये जने वाले वाहन सड़क से बाहर करने की वजह समझ से परे है।
आने वाले समय में कार शोरूमों पर ग्राहकों की भीड़ बढ़ने वाली है। सबको अपनी १५ साल से ज्‍यादा पुरानी कारें सडक से बाहर करनी होंगी। रायल्‍टी पर आयाति‍त टैक्‍नेलाजी और वि‍देशी नि‍वेश पर आधारि‍त वाहन उत्‍पादक कारखानों और शो रूम सेल को बढावा मि‍लेगा। एनसीआर के तत्‍काल बाद ही टीटीजैड में इसे अपनाया जायेगा।
कि‍न्‍तु सोचें कि‍ भारत में अधि‍कांश वाहन बैंक के कर्ज से मासि‍क कि‍श्‍त और ब्‍याज पर खरीदे जाते हैं। चार पहि‍ये के वाहन चालक सात से दस साल की ईएमआई पर वाहन लेते हैं। ऐसे में क्‍या ५ साल तक ही वाहन रखपाने के फार्मूले के बाद कार खरीदना व्‍यवहारि‍क रह जायेगा। देश में वाहनों के इंजन के परि‍प्रेक्ष्‍य में भारत चार मानक लागू हैं। दि‍ल्‍ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हि‍रयाणा समुद्र तट से काफी दूर हैं अत: इस पूरे क्षेत्र में वाहनों में लगी मैटि‍ल में क्षरण आते रहने की कम ही संभावना रहती है। ऐसे में टैक्‍नीकल जांच में सही पाये जने वाले वाहन सडक से बाहर करने की वजह समझ से परे है।
उचि‍त तो यही होगा वाहन उत्‍पादकों से कहा जाए कि‍ वे उन मानकों का उपयोग करें जि‍नसे वाहन १५ साल बाद भी सड़क पर बने रहने की स्‍थि‍ति‍ में रहें। 
सेल लैटर और ब्राण्डों की मार्केटिंग पब्‍लि‍सि‍टी में इस छिपे तथ्‍य को सामने लाया जाए कि‍ खरीदा गया वाहन १५ साल बाद अमुक तारीख से सड़क पर चलने योग्‍य नहीं रह जायेगा। 
भारत अब तक हैरीटेज प्रोपर्टि‍यों और वि‍टेज कार रखने वालों का देश रहा है और आज भी है। नये फार्मूलों से यह 'मेक इन इंडि‍या ' मि‍शन का देश हो जायेगा। यह प्रयास अदूरदर्शि‍ता पूर्ण ही होगा जो छोटी आमदनी वाले वर्ग की पहुंच वाले पुरानी कारों के र्मार्कि‍ट को चोट पहुंचाने का काम करेगा। कि‍न्‍तु शायद मेक इन इंडि‍या मि‍शन की बुनि‍याद तो ’अपनों की ही जेब खाली करवाओं’ पर टि‍की है।
राजीव सक्सेना
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