शिकायत बोल

शिकायत बोल
ऐसा कौन होगा जिसे किसी से कभी कोई शिकायत न हो। शिकायत या शिकायतें होना सामान्य और स्वाभाविक बात है जो हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। हम कहीं जाएं या कोई काम करें अपनों से या गैरों से कोई न कोई शिकायत हो ही जाती है-छोटी या बड़ी, सहनीय या असहनीय। अपनों से, गैरों से या फ़िर खरीदे गये उत्पादों, कम्पनियों, विभिन्न सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की सेवाओं, लोगों के व्यवहार-आदतों, सरकार-प्रशासन से कोई शिकायत हो तो उसे/उन्हें इस मंच शिकायत बोल पर रखिए। शिकायत अवश्य कीजिए, चुप मत बैठिए। आपको किसी भी प्रकार की किसी से कोई शिकायत हो तोर उसे आप औरों के सामने शिकायत बोल में रखिए। इसका कम या अधिक, असर अवश्य पड़ता है। लोगों को जागरूक और सावधान होने में सहायता मिलती है। विभिन्न मामलों में सुधार की आशा भी रहती है। अपनी बात संक्षेप में संयत और सरल बोलचाल की भाषा में हिन्दी यूनीकोड, हिन्दी (कृतिदेव फ़ोन्ट) या रोमन में लिखकर भेजिए। आवश्यक हो तो सम्बधित फ़ोटो, चित्र या दस्तावेज जेपीजी फ़ार्मेट में साथ ही भेजिए।
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मंगलवार, 16 सितंबर 2014

लूट

अस्पतालों की लूट-पाट 
महंगा इलाज नहीं सीधीसीधी लूट                            • फ़ोटो: विशाल
भारत के अस्पताल और डाॅक्टर रोगियों को किस बुरी तरह लूटते हैं, इस बारे में कुछ तथ्य अभी सामने आये हैं। रोगियोंकी शल्य-चिकित्सा के समय जो भी उपकरण उनके शरीर में लगाये जाते हैं, उन्हें दुगुने-तिगुने दामों में बेचा जाता है। रोगी या उसके परिजन मजबूर होते हैं। वे क्या करें? अस्पताल या डाक्टर जो भी बिल बनाकर दे देता है, वह उन्हें भरना पड़ता है। अभी पता चला है कि हृद-रोग से पीड़ितों को जो ‘स्टेन्ट’ लगाया जाता है, उसपर अस्पताल ६० हजार रु. से १ लाख रु. तक मुनाफा कमाते हैं। वे रोगी से कहते हैं कि यह यंत्र तो हमने विदेश से मंगाया है। क्या करें, यह डाॅलर में खरीदना पड़ता है। आपको पता ही है कि डाॅलर तो रुपए की तुलना में लगभग ६० गुना भारी होता है। बेचारा रोगी यह कैसे पता करे कि अस्पताल ने वहउपकरण कौनसी कंपनी से मंगाया, कितने में मंगाया और कब मंगाया।
कई बार कई मियाद बाहर उपकरण भी रोगियों को चिपका दिए जाते हैं। रोगियों को यह भी बता दिया जाता है कि विदेशी उपकरण ही सर्वश्रेष्ठ हैं। भारत में बने उपकरण का कोई भरोसा नहीं। रोगी को अपना घर या जेवर या जमीन बेचना पड़े लेकिन वह अस्पताल की इस ठगी का शिकार हुए बिना नहीं रह पाता। जो लोग गरीब हैं (इनकी संख्या १०० करोड़ के आस-पास है), उनके पास बेचने केलिए कुछ नहीं होता है। उन्हें कर्ज भी कौन देगा? वे अपना इलाज़ कराने की बजाय अपना सिर मृत्यु की दहलीज़ पर टिका देते हैं। चिकित्सा-जैसे पवित्र-व्यवसाय को इतना अधःपतन हो रहा है और हमारी सरकार सोई हुई है। जैसे दवाइयों की कीमतों पर कुछ नियंत्रण लागू हुआ है, वैसे ही इन चिकित्सा-उपकरणों की कीमतों पर नियंत्रण की व्यवस्था तुरन्त क्यों नहीं करती? जरुरी यह है कि देश में चिकित्सा और शिक्षा सर्वसुलभ हो। इसके लिए या तो इन दोनों का पूर्ण सरकारीकरण हो या फिर स्कूल-कालेजों और अस्पतालों पर इतना कड़ा नियंत्रण हो कि वे किसी को ठग न सकें। आजकल पढ़ाई और दवाई, दोनों में नैतिकता शून्य होती जा रही है। वे सिर्फ पैसा कमाने का धंधा बन गए हैं। धंधों में फिर भी कुछ नैतिक नियमों का पालन होता है लेकिन पढ़ाई और दवाई के क्षेत्रों में जैसी लूटमार और ठगी का माहौल बन गया है, वह दुनिया के ‘सबसे पुराने धंधे’ को भी मात करता हुआ दिखाई पड़ रहा है।
• डॉ. वेद प्रताप वैदिक 
(साभार)

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